सुबह सुबह गरम दूध गटका तो एक आवाज़ ध्यान आयी..
“धीरे धीरे पी…जल जाएगा मुँह…खाँसी आ जाएगी”
माँ की आवाज़… ठीक कहती थी माँ।
बच्चों को देर से उठने पर जब डाँटा तो लगा
सुनी सुनी सी डाँट है लेकिन आवाज़ कोई और
माँ की आवाज़… ठीक कहती थी माँ।
“बहुत ज़रूरी है पढ़ाई…यही काम आएगी ज़िंदगी में।”
ज्ञान का सागर बेटी पर उँडेला तो अपना बचपन याद आया।
माँ की आवाज़… ठीक कहती थी माँ।
“तुम कभी अपने लिए कुछ क्यूँ नहीं लेती?” बेटी ने पूछा।
“सबकुछ तो है मेरे पास।” ये जवाब जाना पहचाना सा लगा।
माँ के आवाज़… ठीक कहती थी माँ।
आज ख़ुद माँ हूँ तो हैरान होती हूँ
कब मैं भी बन गयी बिलकुल अपनी माँ जैसी।
जो हमेशा ग़लत ही लगती थी मुझे
आज क्यूँ लगता है कि सब सही ही सिखाती थी वो
फिर सोचा, अभी भी देर नहीं हुई,
मान लेती हूँ अपनी ग़लती
फ़ोन उठाया और नम्बर लगाया…
“हेलो…”, उधर से आवाज़ आयी,
माँ की आवाज़…
“माँ… ठीक कहती थी तुम…”
heart touching poem
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